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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2803
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1
सिन्धु घाटी सभ्यता

प्रश्न- 'सिन्धु घाटी स्थापत्य' शीर्षक पर एक निबन्ध लिखिए।

सम्बधित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सिन्धु घाटी सभ्यता का पता कब तथा कैसे चला?
2. सिन्धु घाटी सभ्यता का नगर-विन्यास किस प्रकार का था?

उत्तर -

दो-तीन हजार वर्ष ई०पू० विकसित सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज से एक आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाश में आया है कि भारत की प्राचीनतम कला सौन्दर्य की दृष्टि से ऐसी ही शून्य थी, जैसी आजकल की कोई भी सभ्यता। जब आजकल की कोई भी सभ्यता जागरण की अँगड़ाई भी न पाई थी तब भारत की यह कला इतनी विकसित थी। इन बस्तियों के निर्माताओं का नगर नियोजन सम्बन्धी ज्ञान इतना परिपक्व था, उनके द्वारा सामग्री ऐसी उत्कृष्ट कोटि की थी और रचना इतनी सुदृढ़ थी कि उस सभ्यता का आरम्भ बहुत पहले, लगभग चार पाँच हजार वर्ष, ईसा पूर्व, मानने को बाध्य होना पड़ता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाइयों से प्राप्त अवशेष तत्कालीन भौतिक समृद्धि के सूचक हैं और उनमें किसी मन्दिर, देवालय आदि के अभाव से यह अनुमान होता है कि वहाँ धार्मिक विचारों का कुछ विशेष स्थान न था, अथवा यदि था तो वह निराकार शक्ति में आस्था के रूप में ही था। फिर भी, विलक्षण प्रतिभा और उत्कृष्ट वास्तुकौशल से आद्योपान्त परिप्लावित भारतीय जनजीवन के इतिहास का ऐसा आडम्बरहीन आरम्भ आश्चर्यजनक होने के साथ-साथ और अधिक गवेषण की अपेक्षा रखता है, जिससे आर्य सभ्यता से, जो इससे भी प्राचीन मानी जाती है, इसका सम्बन्ध जोड़ने वाली कड़ी का पता लग सके।

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सीमित आवश्यकताओं में विश्वास रखने वाले, अपने कृषिकर्म और आश्रम जीवन से सन्तुष्ट आर्य प्रायः ग्रामवासी थे और शायद इसीलिए, अपने परिपक्व विचारों के अनुरूप ही, समसामयिक सिन्धु घाटी सभ्यता के विलासी भौतिक जीवन की चकाचौंध से अप्रभावित रहे। कुछ भी हो, उनके अस्थायी निवासों से ही बाद के भारतीय वास्तु का जन्म हुआ प्रतीत होता है। इसका आधार धरती में और विकास वृक्षों में हुआ, जैसा वैदिक वाङ्गमय में महावन, तोरण, गोपुर आदि के उल्लेखों, मोहनजोदड़ों में खुदाई से प्राप्त विशाल स्नानागार से विदित होता है। अतः यदि उस अस्थायी रचनाकाल की कोई स्मारक कृति आज देखने को नहीं मिलती, तो कोई आश्चर्य नहीं।

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आदिनातहू को समर्पित रनकपुर के जैन मन्दिर में वास्तुकला का नमूना

धीरे-धीरे नगरों की भी रचना हुई और स्थायी निवास भी बने। बिहार में मगध की राजधानी राजगृह शायद 8वीं शती ईसा पूर्व में उन्नति के शिखर पर थी। यह भी पता लगता है कि भवन आदिकालीन झोपड़ियों के नमूने पर प्रायः गोल ही बना करते थे। दीवारों में कच्ची ईंटें भी लगने लगी थीं और चौकोर दरवाजे खिड़कियाँ बनने लगी थीं। बौद्ध लेखक धम्मपाल के अनुसार, पाँचवी शती ईसा पूर्व में महागोविन्द नामक स्थपति ने उत्तर भारत की अनेक राजधानियों के विन्यास तैयार किए थे। चौकोर नगरियाँ बीचोंबीच दो मुख्य सड़कें बनाकर चार चार भागों में बाँटी गई थीं। एक भाग में राजमहल होते थे, जिनका विस्तृत वर्णन भी मिलता है। सड़कों के चारों सिरों पर नगरद्वार थे। मौर्यकाल (4वीं शती ई०पू०) के अनेक नगर कपिलवस्तु, कुशीनगर, उरुबिल्व आदि एक ही नमूने के थे, यह इनके नगरद्वारों से प्रकट होता है। जगह-जगह पर बाहर निकले हुए छज्जों, स्तम्भों से अलंकृत गवाक्षों, जंगलों और कटहरों से बौद्धकालीन पवित्र नगरियों की भावुकता का आभास मिलता है।

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राज्य का आश्रय पाकर अनेक स्तूपों, चैत्यों, विहारों, स्तम्भों, तोरणों और गुफामंदिरों में वास्तुकला का चरम विकास हुआ। तत्कालीन वास्तुकौशल के उत्कृष्ट उदाहरण पत्थर और ईंट के साथ-साथ लकड़ी पर भी मिलते हैं, जिनके विषय में सर जॉन मार्शल ने भारत का पुरातात्विक सर्वेक्षण, 1912-13 में लिखा है कि "वे तत्कालीन कृतियों की अद्वितीय सूक्ष्मता और पूर्णता का दिग्दर्शन कराते हैं। उनके कारीगर आज भी यदि संसार में आ सकते, तो अपनी कला के क्षेत्र में कुछ विशेष सीखने योग्य शायद न पाते"। साँची, भरहुत, कुशीनगर, बेसनगर (विदिशा), तिगावाँ (जबलपुर), उदयगिरि, प्रयाग, कार्ली (मुम्बई), अजन्ता, इलोरा, विदिशा, अमरावती, नासिक, जुनार (पूना), कन्हेरी, भुज, कोंडेन, गांधार (वर्तमान कंधार- अफगानिस्तान), तक्षशिला पश्चिमोत्तर सीमान्त में चौथी शती ई०पू० से चौथी शती ई० तक की वास्तुकृतियाँ कला की दृष्टि से अनूठी हैं। दक्षिण भारत में गुंतूपल्ले (कृष्ण जिला) और शंकरन् पहाड़ी (विजगापट्टम् जिला) में शैलकृत वास्तु के दर्शन होते हैं। साँची, नालन्दा और सारनाथ में अपेक्षाकृत बाद की वास्तुकृतियाँ हैं।

पाँचवी शती से ईंट का प्रयोग होने लगा। उसी समय से ब्राह्मण प्रभाव भी प्रकट हुआ। तत्कालीन ब्राह्मण मन्दिरों में भीटागाँव (कानपुर जिला), बुधरामऊ (फतेहपुर जिला), सीरपुर और खरोद (रायपुर जिला), तथा तेर (शोलापुर के निकट) के मन्दिरों की श्रृंखला उल्लेखनीय है। भीटागाँव का मन्दिर, जो शायद सबसे प्राचीन है, 36 फुट वर्ग के ऊँचे चबूतरे पर बुर्ज की भाँति 70 फुट ऊँचा खड़ा है। बुधरामऊ का मन्दिर भी ऐसा ही है। अन्य हिन्दू मन्दिरों की भाँति इनमें मण्डप आदि नहीं है, केवल गर्भगृह है। भीतर दीवारें यद्यपि सादी हैं, तथापि उनमें पट्टे, किंगरियाँ, दिल्हे, आले आदि, रचना की कुछ विशिष्टताएँ इमारतों की प्राचीनता की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इनके विभिन्न भागों का अनुपात सुन्दर है और वास्तु प्रभाव कौशलपूर्ण। आलों में बौद्धचैत्यों की डाटों का प्रभाव अवश्य पड़ा दिखाई पड़ता है। इनकी शैलियों का अनुकरण शताब्दियों बाद बनने वाले मन्दिरों में भी हुआ है।

हिन्दू वास्तु कौशल का विस्तार महलों, समाधियों, दुर्गों, बावड़ियों और घाटी में भी हुआ, किन्तु देश भर में बिखरे मन्दिरों में यह विशेष मुखर हुआ है। गुप्तकाल (350-650 ई०) में मन्दिर- वास्तु के स्वरूप में स्थिरता आई। 7वीं शती के अन्त में शिखर महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य अंग समझा जाने लगा। मन्दिर-वास्तु में उत्तर की ओर आर्य शैली और दक्षिण की ओर द्रविड़ शैली स्पष्ट दिखती है। ग्वालियर के 'तेली का मन्दिर' (11वीं शती) और भुवनेश्वर के 'बैताल देवल मन्दिर' (9वीं शती) उत्तरी शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं. और सोमंगलम्, मणिमंगलम् आदि के चोल मन्दिर (11वीं शती) दक्षिणी शैली का। किन्तु ये शैलियाँ किसी भौगोलिक सीमा में बँधी नहीं हैं। चालुक्यों की राजधानी पट्टदकल के दस मन्दिरों में से चार (पप्पानाथ-680 ई०, जंबुलिंग, करसिद्धेश्वर, काशीविश्वनाथ) उत्तरी शैली के और छह (संगमेश्वर-75 ई०, विरूपाक्ष-740 ई० मल्लिकार्जुन -740 ई० गलगनाथ-740 ई०, सुनमेश्वर और जैन मन्दिर) दक्षिणी शैली के हैं। 10वीं- 11वीं शती में पल्लव, चोल, पांड्य, चालुक्य और राष्ट्रकूट सभी राजवंशों ने दक्षिणी शैली का पोषण किया। दोनों ही शैलियों पर बौद्ध वास्तु का प्रभाव है, विशेषकर शिखरों में।

भारत की ऐतिहासिक इमारतों की माया और रहस्य के पीछे अनेक किवदंतियाँ हैं। मध्य भारत के कुछ सर्वश्रेष्ठ मन्दिर एक काल्पनिक राजकुमार जनकाचार्य द्वारा बनाए कहे जाते हैं, जिसे ब्रह्महत्या के प्रायश्चित स्वरूप बीस वर्ष इस काम में लगाने पड़े थे। एक अन्य किवदंती के अनुसार ये असाधारण इमारतें एक ही रात में पाण्डवों ने खड़ी की थीं। उत्तरी गुजरात का विशाल मन्दिर (1125 ई०) गुजरात नरेश सिद्धराज द्वारा और खानदेश के मन्दिर गवाली राजवंश द्वारा निर्मित कहे जाते हैं। दक्षिण के अनेक मन्दिर राजा रामचन्द्र के मन्त्री हेमदपन्त के धार्मिक उत्साह से बने कहे जाते हैं और 13वीं शती के कुछ मन्दिरों की शैली ही हेमदपन्ती कहलाने लगी है। इसे अज्ञात निर्माताओं की शालीनता कहें, या ऐतिहासिक तमिस्र, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि मन्दिर-वास्तु, जिसे अनूठे उदाहरण भुवनेश्वर के लिंगराज (1000 ई०), मुक्तेश्वर (975 ई०), ब्रह्मेश्वर (1075 ई०), रामेश्वर (1075 ई०), परमेश्वर, उत्तरेश्वर, ईश्वरेश्वर, भरतेश्वर, लक्ष्मणेश्वर आदि मन्दिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, ममल्लिपुरम् के सप्तरथ, कांचीवरम् का कैलाशनाथ मन्दिर, श्री निवासनालुर (त्रिचनापल्ली जिला) का कोरंगनाथ मन्दिर, त्रिचनापल्ली का जम्बुकेश्वर मन्दिर, दारासुरम् (तंजौर जिला) का ऐरावतेश्वर मन्दिर, तन्जौर के सुब्रह्मण्यम् एवं बृहदेश्वर मन्दिर, विजयनगर का विट्ठलस्वामी मन्दिर (16वीं शती), तिरुवल्लूर एवं मदुरा के विशाल मन्दिर, त्रावनकोर का शचीन्द्रम् मन्दिर (16वीं शती), रामेश्वर के विशाल मन्दिर (17वीं शती) वेलूर (मैसूर) का चन्नकेशव मन्दिर (12वीं शती), सोमनाथपुर (मैसूर) का केशव मन्दिर (1268 ई०), पुरी का जगन्नाथ मन्दिर (1100 ई०), खजुराहो की आदिनाथ, विश्वनाथ, पार्श्वनाथ और कंदरिया महादेव मन्दिर, किरादू (मेवाड़) के शिव मन्दिर (11वीं शती), आबू के तेजपाल (13वीं शती) तथा विमल मन्दिर (11वीं शती), ग्वालियर का सासबहू मन्दिर एवं उदयेश्वर मन्दिर (दोनों 11वीं शती) सेजाकपुर (काठियावाड़) का नवलखा मन्दिर (11वीं शती), पट्टन का सोमनाथ मन्दिर (12वीं शती), मोधेरा (बड़ोदा) का सूर्य मन्दिर (11वीं शती), अम्बरनाथ (थाना जिला) का महादेव सूर्य मन्दिर (11वीं शती), जोगदा (नासिक जिला) का मानकेश्वर मन्दिर, मथुरा वृन्दावन का गोविन्ददेव मन्दिर (1590 ई०), शत्रुंजय पहाड़ी (काठियावाड़) के जैन मन्दिर, रणपुर (सादरी जोधपुर) का आदिनाथ मन्दिर (1450 ई०) आदि आदि देश भर में बिखरे पड़े हैं, जो भव्यता, विशालता, उत्कृष्टता और सार्थकता सभी दृष्टियों से अनुपम है। देश में साथ-साथ विकसित होते हुए बौद्ध वास्तु, जैन वास्तु, हिन्दू वास्तु तथा द्रविड़ वास्तु की ये झाँकियाँ विशाल भारत की परम्परागत धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 'सिन्धु घाटी स्थापत्य' शीर्षक पर एक निबन्ध लिखिए।
  2. प्रश्न- मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के कला नमूने विकसित कला के हैं। कैसे?
  3. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज किसने की तथा वहाँ का स्वरूप कैसा था?
  4. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की मूर्ति शिल्प कला किस प्रकार की थी?
  5. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ-कहाँ प्राप्त हुए हैं?
  6. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन किस प्रकार हुआ?
  7. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के चरण कितने हैं?
  8. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का नगर विन्यास तथा कृषि कार्य कैसा था?
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था तथा शिल्पकला कैसी थी?
  10. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की संस्थाओं और धार्मिक विचारों पर लेख लिखिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय वास्तुकला का परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- भारत की प्रागैतिहासिक कला पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  13. प्रश्न- प्रागैतिहासिक कला की प्रविधि एवं विशेषताएँ बताइए।
  14. प्रश्न- बाघ की गुफाओं के चित्रों का वर्णन एवं उनकी सराहना कीजिए।
  15. प्रश्न- 'बादामी गुफा के चित्रों' के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण दीजिए।
  16. प्रश्न- प्रारम्भिक भारतीय रॉक कट गुफाएँ कहाँ मिली हैं?
  17. प्रश्न- दूसरी शताब्दी के बाद गुफाओं का निर्माण कार्य किस ओर अग्रसर हुआ?
  18. प्रश्न- बौद्ध काल की चित्रकला का परिचय दीजिए।
  19. प्रश्न- गुप्तकाल को कला का स्वर्ण काल क्यों कहा जाता है?
  20. प्रश्न- गुप्तकाल की मूर्तिकला पर एक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- गुप्तकालीन मन्दिरों में की गई कारीगरी का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- गुप्तकालीन बौद्ध मूर्तियाँ कैसी थीं?
  24. प्रश्न- गुप्तकाल का पारिवारिक जीवन कैसा था?
  25. प्रश्न- गुप्तकाल में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी?
  26. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला में किन-किन धातुओं का प्रयोग किया गया था?
  27. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के विकास पर प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के केन्द्र कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
  29. प्रश्न- भारतीय प्रमुख प्राचीन मन्दिर वास्तुकला पर एक निबन्ध लिखिए।
  30. प्रश्न- भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मन्दिरों का क्या स्थान है?
  31. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दू मन्दिर कौन-से हैं?
  32. प्रश्न- भारतीय मन्दिर वास्तुकला की प्रमुख शैलियाँ कौन-सी हैं? तथा इसके सिद्धान्त कौन-से हैं?
  33. प्रश्न- हिन्दू मन्दिर की वास्तुकला कितने प्रकार की होती है?
  34. प्रश्न- जैन धर्म से सम्बन्धित मन्दिर कहाँ-कहाँ प्राप्त हुए हैं?
  35. प्रश्न- खजुराहो के मूर्ति शिल्प के विषय में आप क्या जानते हैं?
  36. प्रश्न- भारत में जैन मन्दिर कहाँ-कहाँ मिले हैं?
  37. प्रश्न- इंडो-इस्लामिक वास्तुकला कहाँ की देन हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- भारत में इस्लामी वास्तुकला के लोकप्रिय उदाहरण कौन से हैं?
  39. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला की इमारतों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- इण्डो इस्लामिक वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने के रूप में ताजमहल की कारीगरी का वर्णन दीजिए।
  41. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत द्वारा कौन सी शैली की विशेषताएँ पसंद की जाती थीं?
  42. प्रश्न- इंडो इस्लामिक वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- भारत में इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला में हमें किस-किसके उदाहरण देखने को मिलते हैं?
  45. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला को परम्परा की दृष्टि से कितनी श्रेणियों में बाँटा जाता है?
  46. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक आर्किटेक्ट्स के पीछे का इतिहास क्या है?
  47. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक आर्किटेक्ट्स की विभिन्न विशेषताएँ क्या हैं?
  48. प्रश्न- भारत इस्लामी वास्तुकला के उदाहरण क्या हैं?
  49. प्रश्न- भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई? तथा अपने काल में इन्होंने कला के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
  50. प्रश्न- मुख्य मुगल स्मारक कौन से हैं?
  51. प्रश्न- मुगल वास्तुकला के अभिलक्षणिक अवयव कौन से हैं?
  52. प्रश्न- भारत में मुगल वास्तुकला को आकार देने वाली 10 इमारतें कौन सी हैं?
  53. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  54. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- मुगल वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  56. प्रश्न- अकबर कालीन मुगल शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  57. प्रश्न- मुगल वास्तुकला किसका मिश्रण है?
  58. प्रश्न- मुगल कौन थे?
  59. प्रश्न- मुगल वास्तुकला की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  60. प्रश्न- भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई? तथा अपने काल में इन्होंने कला के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
  61. प्रश्न- राजस्थान की वास्तुकला का परिचय दीजिए।
  62. प्रश्न- राजस्थानी वास्तुकला पर निबन्ध लिखिए तथा उदाहरण भी दीजिए।
  63. प्रश्न- राजस्थान के पाँच शीर्ष वास्तुशिल्प कार्यों का परिचय दीजिए।
  64. प्रश्न- हवेली से क्या तात्पर्य है?
  65. प्रश्न- राजस्थानी शैली के कुछ उदाहरण दीजिए।

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